लहर - An Inspirational poem
उछलती-कूदती
अनंत-विशाल सागर
अपने प्रेमी से मिलन की आस
मन में लिए
बढ़ती जा रही है
बहती जा रही है ।
ज्यों-ज्यों उमर संभली
अंग-अंग मे यौवन
भरता चला गया
प्रीतम से मिलन की
आस
बढ़ती चली गयी
मन का अनुराग
अपने चरम पर
पहूंचता चला गया ।
ना साथीयों का स्नेह याद रहा
ना सखियों का अल्हड़पन
ना माता-पिता का दुलार
मन मे बस पी मिलन की धुन
बजती रही और वो
निरंतर पल-प्रतिपल
चलती रही बढ़ती रही
बहती रही ......
खड़ा रहा
मुंह बाए
उसकी राह मे
उसके अस्तीत्व को
निगल जाने को आतुर
और वो एक छोटी सी
नन्ही सी लहर
पर मन मे कोई भय नही
कोई डर नही
डटी रही लडती रही
झुकी नही टूटी नही ।
हार कैसे मान लेती ?
उसे हारना था ही नही
हार मान लेती तो
वो अपने साहिल तक
कैसे पहुँचती
उस पर तो अपने प्रिय से
मिलन की धुन
सवार थी ।
आह ! कैसा होगा
वो अदभुद संगम
जब ये छोटी सी
नन्ही सी लहर
ज़िन्दगी के
हज़ारों
थपेड़ों को सहते हुए
अपने
प्रियवर तक
जा पहूँचेगी ।
उसके गले लग कर
उसका मस्तक चूम कर
सदा-सदा के लिये
उसके आगोश
मे
खो जाएगी
सो जाएगी ...

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